मध्यवर्ग पर बजट भारी

वित्त मंत्री अरुण जेटली के बजट भाषण के बाद से ही मध्य वर्ग और नौकरी पर निर्भर लाखों लोग सकते में हैं। उनको उम्मीद थी कि इस बजट में उन्हें आयकर में कुछ छूट मिलेगी, जिससे बढ़ती महंगाई से वे कुछ राहत महसूस कर सकेंगे। वैसे तो आंकड़े बताते हैं कि महंगाई की दर में काफी कमी आई है और स्थिति नियंत्रण में है, पर आंकड़ों से हट कर अगर हम जमीनी सच्चाई को देखें तो पता चलेगा कि रोजमर्रा के वस्तुओं की कीमत तेज गति से बढ़ती तो है पर उसमें गिरावट की गति काफी मंद होती है।

ऐसी स्थिति में नौकरी पर निर्भर परिवारों को बजट से काफी उम्मीदें थीं लेकिन उनकी उम्मीदों पर पानी फिर गया, उनके आकांक्षा की वस्तुओं, जैसे की गाड़ियां, ब्रांडेड कपड़े और गहने पहुंच के बाहर दिखने लगे हैं। आखिर, ये सभी चीजें सिर्फ अमीरों की पहुंच में ही क्यों रहे? बजट में सिगरेट जैसी हानिकारक वस्तुओं पर कर बढ़ा कर वित्त मंत्री ने कैंसर जैसी बीमारी से जनता को बचाने का अच्छा प्रयास किया है लेकिन, बीड़ी को बढे़ हुए कर के दायरे से बाहर रख कर कहीं वो वोट बैंक की राजनीति तो नहीं कर रहे हैं? क्या गरीब बीड़ी पीने वालों को लंग कैंसर नहीं होता? बजट ने ईपीएफ पर टैक्स लगाने की बात कर गैर सरकारी नौकरी पेशा लोगों को और भी निराश किया है।

वित्त मंत्रालय की सफाई है की वह पेंशन जैसे सामाजिक सुरक्षा नेट में अधिक से अधिक लोगों को लाना चाहता है। लेकिन वास्तविकता यह है कि सरकार न्यू पेंशन स्कीम (एनपीएस) को आकर्षक बनाने के लिए केंद्रीय न्यासी बोर्ड के तहत आने वाली वाली सामाजिक सुरक्षा योजना ईपीएस के आकर्षण को कम करना चाहती है। इस बात की पुष्टि वित्त राज्य मंत्री जयंत सिन्हा ने एक टेलीविजन इंटरव्यू में की है। ईपीएस के पैसे को कैसे खर्च करें, इस पर वित्त मंत्री सलाह दे सकते हैं पर वह खाताधारकों को एनपीएस में निवेश करने के लिए मजबूर नहीं कर सकते।

राजीव जायसवाल
As published in Amar Ujala on Mon Mar 6, 2016